मैं 'विद्या' हूँ !
'उसके साथ त्याग, समर्पण के साथ विश्वास की बड़ी पूंजी है जो उसे सबसे अलग बनाती है । उसके हौसले और दृढ इक्षाशक्ति में समाज के नजरिये को बदलने का जज्बा दिखाई देता है । वो ईश्वर की अनमोल रचना है । उसमें पुरुषों सा बल है तो नारी के रूप में ममता का अथाह सागर जिसकी अनंत गहराई में सिर्फ और सिर्फ.. प्यार है ।'
'विद्या' ... ये एक नाम नही बल्कि उस शख्सियत की पहचान है जिसने समाज में मुकम्मल जगह पाने के लिए दशकों तक संघर्ष किया । ये संघर्ष सिर्फ अकेले के लिए नही बल्कि पूरी बिरादरी के लिए है । कठिन रास्तों पर चलते-चलते पाँव के छाले फूटकर कठोर हो गए लेकिन समाज के नजरिये में अब तक बदलाव की कोई धुंधली सी तस्वीर भी सामने नही आई । अफ़सोस होता है, मगर 'विद्या' ने हारना नही सीखा इसलिए उसे खास फर्क नही पड़ता । वो आख़री सांस तक अपनी बिरादरी को अधिकार दिलाने लड़ती रहेगी, मगर कुछ समय अब 'विद्या' अपने लिए जीना चाहती है । उस परिवार की खुशियों का हिस्सा बनना चाहती है जहां उसे बेटी, बहू की तरह स्नेह मिले । ममता के आँचल में कुछ देर अपना सर रखकर वो प्यार की उस गहराई को महसूस करना चाहती है जिससे शायद वो महरूम है ।
'विद्या' से आज मेरी पहली मुलाकात थी । मुलाकात भी अनौपचारिक, वो दफ्तर में मेरी सहयोगी सोनम से मुलाक़ात करने पहुँची थी । चूँकि सामने था इस वजह से सहयोगी ने विद्या से मेरा परिचय कराया । दुआ-सलाम के बाद मेरे सहयोगी और विद्या के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ जो करीब-करीब 40 मिनट तक जारी रहा । मैं सामने मूक श्रोता बना विद्या की बातों को गंभीरता से सुनता रहा, उसके चेहरे की भाव-भंगिमा को पढने की कोशिश की । जहाँ जरूरत महसूस होती वहाँ अपनी गर्दन हिलाकर उसकी बातों में सहमति देता ।
इस चर्चा में संघर्ष के दौर का जिक्र था, पूरी बिरादरी के हक़ की हकीक़त के बाद स्वयं के प्यार की दास्ताँ पर सिलसिलेवार बात होती रही । बातों का दौर शायद ख़त्म ना होता गर समय की पाबंदी विद्या के साथ नहीं होती, उसे शायद घर लौटना था । जिस तरह परिचय के दौरान मैने खड़े होकर करबद्ध उसका अभिवादन किया ठीक उसी तरह उसके लौटने पर हाथ जोड़े मैं पुनः कुर्सी छोड़कर खड़ा था । मगर इस बार के अभिवादन में विद्या के लिए मेरे मन में ज्यादा मान-सम्मान था । उसकी बातें, त्याग और समर्पण के साथ उसका समाज को लेकर सकारात्मक नजरिया मुझे भीतर तक झंकझोर चूका था । 'विद्या' की बातें कई सवाल छोड़ गईं, कुछ अनकही दास्ताँ जिनके ऊपर की गर्द को हटायें तो ना जाने कितने जख़्म, कितनी जिल्लतें और ना जाने दर्द से कराहती कितनी ही आवाजों का शोर सुनाई देता है ।
विद्या ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का प्रतिनिधित्व करती है । प्रारंभिक शिक्षा कोंडागांव जिले के फरसगांव से हुई । इसके बाद विद्या ने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से हिंदी में मास्टर डिग्री ली । इतना ही नही उन्होंने सोशल वर्क के लिए भी कई डिग्री हासिल की । मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया है । वे कई संस्थाओं से जुडी हैं जो ट्रांस या फिर थर्ड जेंडर के लिए काम कर रहीं हैं। शिक्षा से विद्या का लगाव उसे इस लायक बनाता चला गया कि आज वो किसी भी मुद्दे पर बे-बाक बोलने को तैयार रहती है । उसका शिक्षित होना ही उसे अधिकारों के प्रति जागरूक करता रहा साथ ही अपने अधिकार के लिए संगठित होकर लड़ना सीखा गया । समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए विद्या और उसकी कम्युनिटी से जुड़े सदस्यों ने लंबे समय तक संघर्ष किया, आज भी कई मांगों को लेकर संघर्ष जारी है । सरकारी नौकरी में 2 प्रतिशत आरक्षण से लेकर समाज में उचित मान-सम्मान पाने के लिए ट्रांसजेंडर कम्युनिटी ने कई बार सरकार के दरवाजे पर दस्तक भी दी । विद्या का मानना है सामाजिक नज़रिया बदलने से बहुत सारी कठिनाइयाँ ख़त्म हो जाएँगी । आज हालात ये हैं कि ट्रांसजेंडर को उन्ही का परिवार उपेक्षा का दंश भोगने के लिए अकेला छोड़ देता है । यौन हिंसा की घटनाएं आम हैं लेकिन कब तक ? सवाल बड़ा है, जवाब भी हमें ही मिलकर ढूढ़ना होगा ।
'विद्या' की बातों से मुझे उसके जीवन के दूसरे और सबसे अहम् पहलू से मुलाक़ात करने का मौक़ा मिला । उसकी बातों में जिंदगी को जी भर जी लेने की लालसा भी दिखाई पड़ी । उसे किसी से बेइन्तहां मोहब्बत भी है । बातों से खुलासा हुआ, उसकी आशिकी में दीवानी 'विद्या' अब घर बसाना चाहती है । प्यार को पति और सास-ससुर को माँ-बाबा के रूप में देखने की ख्वाहिश है । उसे मालूम है समाज क्या सोचेगा, क्या कहेगा ? अपने घर की देहरी से उपेक्षित हो चुकी विद्या जानती है ख्वाहिशों की कोई सीमा नही मगर दायरा जरूरी है । अपनी खुशियों के लिए किसी दूसरे की ख़ुशी में ग्रहण नही लगाना चाहती । उसकी बातों में त्याग, सेवा, समर्पण के अलावा विश्वास झलकता है । उसे मालूम है अगर घर बस भी गया तो बच्चे नही हो सकते, मगर हौसला देखिये । विद्या कहती है क्या हुआ जो हम कोख से बच्चा नही जन्म दे सकते , अरे सौ बच्चों को पालने का कलेजा है । वो खुद को ईश्वर तो नही मानती मगर उसकी बनाई हुई सर्वश्रेष्ठ रचना मानकर समाज में अपनी अनगिनत भूमिका पे खरा उतरना चाहती है । विद्या राजपूत.. ये पूरा नाम है । अतीत से खास वास्ता नही इस कारण पुराने नाम को जानकर भला मैं भी क्या करता । अब मैं भी तुमको 'विद्या' के नाम जानता हूँ, जानता रहूँगा ।
जिंदगी की पटकथा में अपने हर किरदार पर खरा उतरने की कोशिश में जुटी विद्या कुछ पल रुककर अब अपने लिए जीना चाहती है । जी रही है, खुश भी है मगर दिल में एक कसक है । अपनों के बिछड़ने की निराशा, नए हमसफर के मिल जाने की ख़ुशी फिर भी कई सवाल... !
7 Comments:
हिजड़ों की जिन्दगी बहुत कठिन होती है, कदम कदम पर जिल्लत का सामना करते हुए दुनिया से लड़कर जीना इनकी अदम्य जीजिविषा को सामने लाता है। बढिया पोस्ट।
हिजड़ों की जिन्दगी बहुत कठिन होती है, कदम कदम पर जिल्लत का सामना करते हुए दुनिया से लड़कर जीना इनकी अदम्य जीजिविषा को सामने लाता है। बढिया पोस्ट।
very nicely written and explained about transgenders. We all need to talk. discuss and do more for them.. we must talk about their social justice after all they are all human beings. Very Good article Sir. Thanks
विद्या को सलाम, अपने आस-पास भी ऐसे प्रेरक लोक हैं पता ही नहीं था. धन्यवाद भाई.
बेहतरीन और संवेदनशील लेख .. काश सभी ऐसा सोचते
Bahut badhiya post hai aadrniy
We can writ about trans we can feel bad for theme but we can not accept them as our brother and sister ???
If you can feel the pain of trans thain first accept them as your friend. .
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