Saturday 3 September 2016

कहाँ थे एमएलए साहेब..।

         विकास की राह में मौत का पहरा   [तस्वीर / रविन्द्रनाथ टेगौर चौक, बिलासपुर]
कहाँ छुपे हो एमएलए साहेब  ! बिलासपुर विधानसभा की सियासत के देवाधिदेव तो तुम ही हो ! आम जनता सीवरेज, बदहाल सड़कें, बजबजाती गंदगी और गर्दो-गुबार से त्रस्त है और तुम हो कि 12 साल से विकास के पहाड़े ही लोगों को सुना रहे हो ! हाय रे सड़क ... बड़ा कष्ट दीन्हा। एमएलए साहेब की  घोषणावीरता के आगे सियासत के बड़े-बड़े विधाता नतमस्तक हैं, चार पंचवर्षीय से ऐसा छक्का मार रहें हैं कि गेंद विपक्षियों की औकात की बाउंड्री के बाहर जाकर गिर रही है। बिलासपुर विधानसभा के 13 लाख से ज्यादा अम्पायर [मतदाता] हैरान हैं कि खेल का मज़ा भी नहीं ले सकते और आउट भी नहीं दे सकते । शहर की तरक्की का ऐसा फार्मूला निकाला है कि लाखों जरूरतमंदों का दिवाला ही निकल जाये। अरे अमर बाबू ...  संस्कारधानी [बिलासपुर] के लोगों की आराधना में पता नहीं कहाँ कमीं रह गई ? कहीं तो रही होगी तभी तो चलने को सड़कें नहीं हैं, गंदगी से शहर पटा पड़ा है, सीवरेज के सिस्टम को जनता समझते-समझते गढ्ढों में समा रही है और आप [एमएलए साहेब] हैं की मैनेजमेंट के टॉप स्टूडेंट की भांति पिछली चार पंचवर्षीय परीक्षाओं में सफलता का परचम लहरा रहें हैं। आप तो जान ही गये हैं इस देश में चुनाव विकास के दम पर नहीं, बेहतर मैनेजमेंट की ताकत से जीते जाते हैं। 
 अपने शहर की सूरत पर जब भी नज़र उठाता हूँ चेहरा बदरंग ही दिखाई पड़ता है, सोचता हूँ कुछ बरस पहले तक इतनी बदहाल, बदरंग और बदसूरत तो नहीं थी 'बिलासा' ... क्या विकास के मेकअप ने सूरत बिगाड़ दी या फिर 'बिलासा' में उस तासीर के लोग कम हो गए जिन्हें शहर से लगाव था, समाज की फ़िक्र थी, बड़े-छोटों का अदब हुआ करता था ? कुछ तो हुआ है जिसकी वजह से संस्कारधानी की सीरत और सूरत बदल गई । इन सोलह सालों में शहर का भौगोलिक नक्शा तो बढ़ा, सड़कें हमारी छाती से भी ज्यादा चौड़ी हो गईं मगर सब आधा-अधूरा। राज्य विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ के कुछ शहरों का जिस रफ़्तार से कायाकल्प हुआ लगा चंद सालों में हम भी महानगरीय जीवनशैली के स्वरुप को पा लेंगे लेकिन वो एक अधूरा ख्वाब ही रहा। मेरे शहर बिलासपुर को स्मार्ट सिटी बनाने की मांग भी उठी, उठाना भी चाहिए। मगर एक बार शहर के वर्तमान हालात को करीब से देखकर हम स्मार्ट सिटी बनाने का शोर मचाएं तो ज्यादा बेहतर होगा। करीब 9 साल हो गए भूमिगत नाली का काम होते हुए। आज भी हो रहा है और अभी तारीख तय नहीं कब तक होगा।  हाँ उस नाली के काम से कई फ़कीर लक्ष्मीपुत्र कहलाने लगे। बात मौके की है, मुझे अफ़सोस नहीं होना चाहिए। ये नहीं तो वो पाते। सवाल ये खड़ा होता है कि विकास के नाम पर की जा रही खुदाई में सिर्फ आम मतदाता ही क्यों गिरे ? आज शहर के अधिकाँश इलाको में सड़कें खोजे नहीं मिलती। अब तो गढ्ढों में चलते-चलते पाँव जब समतल जगह पर पड़ते हैं तो लगता है कहीं मोच न आ जाये। ना जाने कौन सी जगह पैर पड़ते ही शरीर भूमिगत हो जाये ? सच कहूँ, मेरे शहर में अब हर सड़क हादसों का नेउता लिए आगे को बढ़ती है। बचकर निकल गए तो मुकाम पर पहुँच जाएंगे नहीं तो अस्पताल पहुँचने की वारंटी-गारंटी का टैग ठीक उसी तरह सड़कों के बीच लगा हुआ है जैसा इस पोस्ट में लगी दो तस्वीरों में आप देख रहें हैं। पोस्ट में लगी तस्वीर रविन्द्रनाथ टेगौर चौक की है। तस्वीर में भूमिगत नाली के काम का सबूत आपको दिखाई पडेगा जिस पर नगर निगम बिलासपुर की मेहरबानी से ट्री गार्ड लगा दिया गया है। ऐसे कई इलाके हैं जहां मौत मुंह फाड़े सालों से बैठी है। उसमें कई समाये और जन्नत -जहन्नुम जहां जाना था चले गए, कइयों की हड्डियों का इलाज अब भी चल रहा है। 
आज मंत्री अमर बाबू शहर भ्रमण पर निकले, साथ में निगम के अफ़सर और समर्थकों का मज़मा । कई इलाको में गए, शहर के हालात देख अफसरों को खरी खोटी भी सुनाई । अफसरों से बोले लापरवाह ठेकेदारों को ब्लैक लिस्ट करो । वाह बाबू साहब... आप जमीन पर चलकर शहर की बदहाली देखने आज निकले । ये जनता तो सालों से उस बदहाली में रहकर नारकीय जीवन जी रही है । कहीं पीने के पानी की किल्लत, कहीं गंदगी से सेहत का मिज़ाज़ गड़बड़ तो कहीं पे सड़क की ना ख़त्म होने वाली तलाश । मुझे आज भी अच्छे से याद है इंदु चौक के पास की बदरंग और बेतरतीब सूरत । शिव टाकीज चौक पर हादसे को बुलावा देती तस्वीर पोस्ट पर लगी हुई है । यातायात व्यवस्था सुधारे नहीं सुधरी, बस हेलमेट की आड़ में कभी जेब तो कभी सरकारी खजाने का वजन बढ़ता रहा । जनता को अपनी बर्बादी दिखती तो है मगर अव्यवस्थित विकास पर भारी पड़ता आपका व्यवस्थित मैनेजमेंट कुछ कहने नहीं देता । हकीकत से जनतंत्र वाकिफ़ है, आप तो सरकार है भला आपसे क्या छुपा है ? आज आपने देख ही लिया स्मार्ट बनने की राह में अटकती साँसो को लिए हम सिर्फ शोर मचाये जा रहें है । सफाई अभियान की हकीकत आपके और प्रशासनिक अफसरों के बंगलों से कुछ ही दूर चलने पर दिखाई पड़ जाती है । बहुत से मुद्दे हैं, समस्याओं का अम्बार भी है मगर दोष किसको दें ? हमने ही तो आपको देवाधिदेव मानकर कुर्सी दी, सत्ता सौपी और आप ? विपक्ष कुछ बोलने की स्थिति में नही है । विकास के ठेकेदारों की सूचि में सत्ता और विपक्ष का गठबंधन बेजोड़ है ।
अंत में सिर्फ इतना ही कहूँगा कि आप भी मेरे शहर में जब कभी तफरी करने आएं तो जरा संभलकर चलें क्योंकि यहां के पथ न तो बिनानी सीमेंट से बने है ना ही सीवरेज के गढ्ढों पर लगे ढक्कन में फेविकोल का मजबूत जोड़ लगा है । जरा संभलकर चलिए, क्योंकि इन 16 सालों में विकास के पन्ने पलटते वक्त आपको कहीं गौरव पथ मिलेगा, कहीं तुर्काडीह पुल की मजबूत पाइल से मुखातिब होने और करिश्माई इंजीनियरों की करतूतें दिखाई पड़ेगी । हर राह से गुजरते वक्त स्वच्छ भारत मिशन के अतुलनीय दृश्य दिखाई पड़ेंगे ।  और भी बहुत कुछ लेकिन जो मुझसे लिखते वक्त छूट गया उसे आप खुद देखिये । बहुत कुछ तो मंत्री अमर बाबू भी आज देख आएं हैं । देखते है कल क्या बदलता है ? 

1 Comments:

At 5 September 2016 at 00:33 , Blogger ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत खूब

 

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